रोचक
आम की आम कहानी – आम की किस्मों के नाम हमेशा ही आम व्यक्ति को भ्रम में डालते हैं।

आम की आम कहानी – अभी तक इस सीजन में ‘आम’ के दर्शन नहीं हुए। वैसे भी ‘आम’ से हम जैसे ‘आम लोगों’ का खास वास्ता नहीं है, क्योंकि फल का नाम भले ही परमात्मा ने ‘आम’ रख लिया हो, लेकिन मेरे जैसे ‘आम’ के बस में यह कभी नहीं आया। हा, कभी कभी हमारे शहर के एकमात्र प्रसिद्ध ज्यूस सेंटर ‘लक्ष्मी ज्यूस सेंटर’ में हमारे परम् मित्र इसका स्वाद टेस्ट करा लेते थे, लेकिन इस बार सत्यानाश हो इस कोरोना का अब तक चखा नहीं।
आज सुबह सब्ज़ी लेने बाजार में गया तो एक फ्रुट्स लॉरी पर अच्छी किस्म के आम दिखे, भाव पूछा तो पता चला 350/- रुपए किलो, मैंने कहा -”आम सही नहीं लग रहे है।” वापस आ गया। अब बेचारे लॉरी वाले को क्या मालूम ‘आम’ तो अच्छे ही थे, यह मेरे वाले ‘आम’ नहीं थे। चलिए आपको मेरे वाले ‘आम’ से परिचय करवाता हूँ।
दरअसल इस देश में ‘आम’ को फलों का राजा कहा जाता है। इस देश मे ‘आम’ की स्थिति बिल्कुल प्रजातंत्र की तरह है। अच्छी किस्म का ‘आम’ कभी भी ‘आम व्यक्ति’ को नसीब नहीं हुआ। अच्छी किस्म के आम को आम व्यक्ति सिर्फ महसूस कर सकता है, दूर से देख सकता है लेकिन वह उसे मिलता नहीं है।
आम की कहानी यह भी है कि जब आम की सीजन शुरू होती है तब यह फलों का राजा छोटे शहरों में 400 से 500 रुपये किलो में बिकता है। कुछ शहरों में यह दर्जन के भाव भी बिकता है। वैसे तो अच्छी किस्म जैसे रत्नागिरी हापुस वगैरह मुम्बई जैसे महानगरों में जब शुरू शुरू में आता है, तो यह हजारों रुपये पेटी में बिकता है, इतना महंगा कि करोड़पति परिवार ही इसका मूल्य चुका सकते हैं। फिर धीरे धीरे यह दूसरे लोगों तक पहुंचता है, लेकिन वह किस्म दूसरे दर्जे एरोप्लेन, अल्फांसो आदि होती है।
देश के दूसरे हिस्सों में वैसे तो रत्नागिरी हापुस व अच्छी किस्म (क्वालिटी) के आम बिकते ही नहीं है, क्योंकि उन्हें खरीदने लायक ग्राहकों का यहाँ सर्वदा अकाल है लिहाजा दूसरी हापुस की क्वालिटी बिकती है जो 300 रुपये से 400 रुपए किलो तक मिलता है।
अब आप अंदाजा लगाए की 10 रुपये किलो प्याज़ तलाशने वाला ‘आम आदमी’ हापुस जैसा आम खा सकता है, कदापि नहीं। वह तो अपनी तलब सड़क किनारे तम्बू गाड़कर आम रस बेचने वाले से 10 या 15 रुपए का एक गिलास आम ज्यूस पीकर मिटाता है। अब यक्ष प्रश्न यह भी है कि उस आम के गिलास में आम कितना होता है, यह तो सिर्फ बेचने वाले को ही पता होता है।
वैसे गरीब तबके के मेरे जैसे लोगों केलिए आम की एक विशेष किस्म आती है जिसका नाम हमेशा भ्रम पैदा करता है। उसका नाम है ‘बादाम’, अब नाम बादाम लेकिन यह आम की गरीब किस्म होती है जो शुरू में 100 रुपए बिकती है, फिर धीरे धीरे इसका भाव कम होता जाता है। यहाँ जब बादाम किस्म का भाव व्यक्ति की किस्म से मिलता है, तब वह इसे खरीदकर इसे खाता है। यह भी आम व्यक्ति केलिए आम कहानी की तरह है।
वैसे मध्यम वर्ग केलिए एक विशेष किस्म और आती है जिसे ‘केसर’ नाम दिया है। आम की यह केसर किस्म मध्यम वर्गीय परिवार की फेवरेट किस्म समझ सकते है। इसका भाव शुरू में कुछ ज्यादा होता है लेकिन बाद में हैसियत से मिलना शुरू हो जाता है।

Sweet Mango
एक विशेष बात कहनी जरूरी है कि कुछ सभ्य लोग आम को काटकर खाते हैं व मेरे जैसे असभ्य लोग चूस कर खाते हैं। वैसे तो हम रस निकालकर इसमे रोटी भी खाते हैं। हमारे जैसे परिवार में आम का महत्व इस बात से समझे कि जिस दिन आम का रस निकालते हैं, उस दिन सब्ज़ी नहीं बनाते। जो ज्यादा सभ्य, शालीन व थोड़े उच्च वर्ग के लोग है वह मिक्सी में रस निकालकर उसमे दूध, घी मिलाकर बढ़िया गाढ़ा रस पीते है, या यूं कहें कि चम्मच से खाते है।
मेरे परिवार में आम को मिक्सी जैसी टेक्नोलॉजी की जरूरत नहीं पड़ती क्योकि हम लोग आम का पूरा रस निकालते है, रस गुठली सहित निकालते हैं। गुठली को भी पूरा निचोड़ते है, ज्यादा तंगी चल रही है तो गुठली को पानी मे धोते हैं, ताकि आम का पूरा रस निकल जाए। उसके बाद उसे घर के बागड़बिल्लो को चूसने केलिए दे दिया जाता है।
यहाँ सही तरीके से ‘आम’ को भी पता चलता है उसका रस कैसे निकलता है। रस निकल जाने के बाद घर की मुखिया औरत घर के सदस्यों व निकले आम का तुलनात्मक अध्ययन करती है, उस हिसाब से उसमे पानी मिलाकर रस तैयार होता है। वैसे सदस्य ज्यादा है तो ज्यादा पानी मिलाकर शक्कर की मात्रा बढ़ा दी जाती है। वैसे भी हम लोग असली रस के आदि होते नहीं इसलिए उस आम रस को भी बड़े ही चाव से खाते हैं। प्रतिदिन से एक दो रोटी रस में ज्यादा खाते है। यह भी आम व्यक्ति केलिए आम कहानी की तरह है।
वैसे जून माह में जब बरसात दस्तक देती है तब एक और अंतिम किस्म आम की बाज़ार में आती है जो बिल्कुल गरीब लोगों केलिए होती है उसका नाम है ‘लँगड़ा’। लँगड़ा आम एक तरह से पैसे से लँगड़े लोगों केलिए राम बाण की तरह है।
फलों के राजा आम की किस्म हमेशा व्यक्ति की औकात अनुसार वर्षों पहले ही बन गई थी, तब से यू ही बिक रही है। फलों का राजा ‘आम’ हमेशा ही गरीब व अमीर व्यक्ति में भेदभाव से बिकता रहा है, जो ‘आम’ तो है लेकिन ‘आम व्यक्ति’ के नसीब में नहीं है। जब अच्छी किस्म के आम अमीर लोग खाते हैं तो आम को ‘बादाम’ का नाम देकर गरीब को बेचा जाता है ताकि गरीब भी इस भ्रम में रहे कि वह भी “आम” खाता है।
खैर, पोस्ट ज्यादा लम्बी हो रही है इसलिए विराम देता हूँ, वरना तो आज ‘आम’ पर उपन्यास लिख देता। वैसे अभी बाजार में ‘हापुस’ आ गया है जो मैं खरीद नहीं सकता।
मुझे तो इंतज़ार है 50 रुपए किलो वाले ‘केसर’ का, जब आएगा तब उसे निचोड़ा भी जाएगा, चूसा भी जाएगा व चाटा भी जाएगा। तो यह थी आम व्यक्ति केलिए आम की रोचक कहानी। धन्यवाद, अगली आम कहानी शीघ्र ही दैनिक हिंदी डॉट इन पर।
(गरीब मोबाइल से टाइप करता है इसलिए हिंदी त्रुटि सम्भव है।)
रोचक
चमचों की दुनिया – वैज्ञानिक सोच होती है चमचों की, इनसे बचना मुश्किल है।?

चमचों की एक अलग दुनिया ही होती है। कभी कभी लगता है कि यह एलियन्स से ज्यादा चतुर होते हैं। अगर यह चमचा प्रजाति अपने दिमाग का सही इस्तेमाल करने लगे तो समाज के विकास में अच्छी भागीदारी निभा सकते हैं। खैर, आदत से लाचार यह चमचा प्रजाति हमेशा हर जगह पाई जाती है। यह चमचे अपने मालिक को हर वक़्त घेरे रहते हैं। चमचें दरअसल भीतर से डरे-सहमे रहते हैं, उन्हें लगता है कि अगर मालिक को उनकी सच्चाई पता लग गई तो उन्हें दूर कर देंगे, इसलिए यह उन्हें घेरे रहते हैं।
चमचों की दुनिया अलग ही होती है। दरअसल समाज व राजनीति में व्यक्ति विशेष के पास दो-चार चमचें आवश्यक रूप से पाए जाते हैं। यह अपने आका के दिलों दिमाग मे धीरे धीरे बेफ़ितूर की बातें भरते रहते हैं। अब यह जो चमचों से घिरे रहते हैं, यह भी कान के कच्चे लोग होते हैं।, जिनके पास विवेक की कमी रहती, जो सुनी सुनाई बातों पर भरोसा कर अच्छे लोगों से दूरी बना देते हैं।
दरअसल जिस प्रकार भोजन से भरे हुए बर्तन को चम्मच व चम्मचें खाली करते है, ठीक उसी प्रकार यह प्रजाति अपने मालिक के विवेक को खाली करते रहते हैं। कान के कच्चे लोगों के दिमाग में एक विवेक नाम का केमिकल होता है, जो चमचों के ज्ञान से उस विवेक में साइड इफेक्ट हो जाता है।
इन चमचों के चक्रव्यूह में कैद मालिक अपने घर की दिवारों के सुराख नहीं देख पाते हैं। इन सुराखों से झाँकती घिनोनी सूरत एक न एक दिन उन पर सवालिया निशान लगा देती है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, यह चमचों की दुनिया की विशेषता है।
ऐसा भी नहीं है कि यह सिर्फ कल्पना है, बल्कि जिंदगी के तजुर्बे से सीखा उसे व्यंगात्मक रूप से लिखा है, जो किसी भी व्यक्ति विशेष, विशेष चमचें या विशेष मालिक पर नहीं है, यह सिर्फ व्यक्तिगत अनुभव मात्र है।
चमचा बनना भी बहुत बड़े हुनुर का काम है। मैं भी पहले एक चमचा प्रजाति का अहम हिस्सा रहा हूँ, लेकिन इस्तेमाल के बाद ‘यूज एंड थ्रो’ करके इस चमचे को एक तरफ फेंक दिया गया। दरअसल मैं ज्यादा काबिल चमचा नहीं बन पाया। मेरे पिछड़ने की यह एक वजह हो सकती है। जो आगे निकल गए वह वाकई काबिल थें। चमचों की दुनिया की एक विशेषता यह है यह हर जगह उपलब्ध है।
अपने प्रभाव व चमचों के चक्रव्यूह में घिरे तथाकथित समाजसेवी, राजनीतिज्ञ सफलता के घोड़े पर बैठकर जिस उगते हुए सूर्य को पकड़ने केलिए दौड़ते हैं लेकिन ….सूर्यास्त तय है। जब तक आप वहा पहुंच पाएंगे सूर्य ढल चुका होगा। उनकी जगह कोई नया प्रभावशाली चेहरा घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ेगा। रही बात चमचों की तो वह गन्दे बर्तनों के ढेर में पड़े रहते है, जहाँ उनपर चींटियां रेंगती है। आप ज्यादा काबिल है तो ज्यादा इस्तेमाल किये जाएंगे, लेकिन इस्तेमाल होना ही चमचों की किस्मत है।
दरअसल आज बहुत दिनों बाद पुरानी किताबों के पन्ने पलटते हुए मेरी खुद की कुछ छपी तस्वीरों पर नज़र पड़ी। जिन किताब के पन्नों पर गर्व था, आज उन तस्वीरों में मुझे मेरी शक्ल बहुत भद्दी नज़र आई। बड़े लोगो के बीच में जिराफ जैसी गर्दन… मुझे अपनी शक्ल में एक जीभ निकालता मालिक की बगल में खड़ा एक …… नज़र आया। परिपक्वता के साथ अनुभव हुआ तो देर हो चुकी थी….। अब पछताए क्या होत जब चिड़िया…..। मनचाहा या मन मे सोचा हो जाये तो इंसान भगवान न बन जाये। फिर भी जीवन ने मौका दिया तो एक अधूरी कहानी कभी अवश्य लिखूंगा जो वर्षो तक लोगों के जेहन में जिंदा रहेगी। सबक बनकर न सही, नफरत बनकर ही सही।
वैसे सलाहकार और चमचों के बीच एक महत्वपूर्ण फर्क होता है कि सलाहकार नेक सलाह देते हैं, चमचें गुमराह करते हैं। हम लोग इतिहास को पढ़ते है, किताबें पढ़ते है, टीवी देखते है लेकिन इतिहास के चमचों पात्रों से सबक नहीं लेते। महाभारत के पीछे भी एक ऐसे ही पात्र की भूमिका रही। महाभारत में तथाकथित शुकुनी मामा ने महाराज धृष्टराज के विवेक को शून्य कर दिया था।
महाभारत एक मात्र उदाहरण नहीं है। इसके विपरीत जीवन में चाणक्य की भूमिका निर्णायक व उपयोगी रहती है। चाणक्य ने अपने ज्ञान व सलाह से चन्द्रगुप्त को सम्राट बना दिया। हमारा जीवन है, हमें तय करना है कि हम किससे घीरे रहे, कौन सही सलाह देता है या कौन हमारे लिए उपयोगी है।
मैंने व्यक्तिगत तौर पर बहुत नादानियां की है, जिसका खामियाजा आज तक भुगत रहा हूँ। जिंदगी तबाह हो गई, भूख से अंतड़ियां बिलबिला उठी, सब कुछ खो दिया तब समझ में आया कि ‘अपने विवेक से अच्छा कोई दोस्त दुनिया में नहीं हो सकता।’ लेकिन जब समझ में आया तो देर हो चुकी थी।
जिंदगी ने सिखाया कि हर व्यक्ति हमदर्द नहीं होता, आपको जीवन में निर्णय अपने बलबूते पर ही लेना है। दूसरों के कंधों पर तो आखरी सफर तय होता है, बस। जीवन में स्वाभिमान से बढ़कर कुछ नहीं। चमचें नहीं अच्छे मित्र बनें, यदि आप कुछ जानते हैं तो अच्छी सलाह देवे, नहीं जानते तो ‘ना’ कहना जरूरी है। यह कहानी थी, चमचों की दुनिया की। आशा है आपको पसंद आएगी।
रोचक
रोचक आप बीती घटना – जीवन में छोटी छोटी घटनाओं का महत्व है।

व्यंग्य/रोचक आप बीती – लॉक डाउन के दिनों की बात है, एक दिन मेरी वाली श्रीमती जी का पूरा ध्यान रामायण सीरियल में भगवान राम की तरफ था। सुबह लगभग 9.30 का वक़्त था.. भगवान राम को वनवास का आदेश मिल चुका था। टेंशन में श्रीमती जी ने चाय को चाय की पत्ती के डिब्बे में ही छान लिया। जब ध्यान आया तो लगभग एक कप चाय, चाय पत्ती के डिब्बे में छन चुकी थी। उसने फटाफट डिब्बे की सारी पत्ती को थाली में खाली कर सुखी व भीगी चाय पत्ती को अलग अलग किया। जो चाय पत्ती सलामत थी, उसे अलग वापस डिब्बे में रखा व भीगी चाय की पत्ती एक तरफ रखी।
अब राम के वनवास से ज्यादा गम भीगी चाय की पत्ती का था। उसने गम में मुझे चाय पिलाई। एक तो गरीबी, ऊपर से लॉक डाउन व सबसे महत्वपूर्ण मेरा काम काज ठप्प होना। आम परिवार में इतनी चाय की पत्ती का क्या महत्व है, हम ही समझ सकते है। उसने मुझसे पूछा भी कि भीगी हुई चाय काम में आ सकती है या नहीं। मैने समझाया कि ”चाय भीगी मतलब काम में आ गई…।” उसने दुःखी मन से उसे बाहर डाल दिया। उस दिन सीरियल का मज़ा किरकिरा हो गया। मैं उस घटना को भूल गया।
?
कल फिर एक घटना घटी। मैं दुदी (लौकी) की सब्ज़ी व साथ में कड़ी रोटी खा रहा था। मैंने कहा कड़ी में थोड़ा घी डाल दे, उसने आँखे निकाली। मैं समझ गया.. वह क्या कहना चाहती है। एक तो काम धाम नहीं, ऊपर से कड़ी में घी…सवाल ही नही था। खैर, तभी उसने रोटी सुपड़ कर रखे घी के डिब्बे में एक बड़ा चम्मच कड़ी डाल दी… जब तक समझ में आया देर हो गई थी। घी के डिब्बे को रोटी सुपड़ कर रखा था, घी के डिब्बे में ढक्कन नहीं था। वह कटोरी में अपने लिए कड़ी निकाल रही थी, भूल से एक चम्मच (सब्ज़ी का बड़ा चम्मच) भर कर कड़ी को घी में डाल दिया.. अब…❗❓
घी लगभग 500-600 ग्राम होगा। उसमें कड़ी… मक्खी होती तो निकाल भी देते लेकिन कड़ी असम्भव सा था। उसने बुरा मुँह बनाया… कोरोना को बुरा भला कहा। अब इसमें कोरोना कैसे घुसा यह पता नहीं चला। लेकिन गलती किसी न किसी पर तो थोपनी थी, लिहाजा कोरोना सही। वैसे भी कलमुंहे कोरोना ने काफी परेशान तो किया ही है, उसकी ही गलती होगी।
खैर उदास मन से उसने घी का डिब्बा मेरे पास रखा -”जितना खाना है खा लो।” तब तक मैं लगभग रोटी खा चुका था। घी का डिब्बा तीन-चार दिन पड़ा रहा, बाद में उसने KADI WITH GHEE बाहर कचरे में फेंक दिया।
कहानी का सबक —
(1) अब तक विज्ञान ने इतनी तरक्की नहीं कि है कि घी में से कड़ी निकाल सके।
(2) घी में से मक्खी निकाली जा सकती है कड़ी या अन्य सब्ज़ी नहीं।
(3) चाय में भीगी चाय पत्ती काम में नहीं आती। चाय पत्ती एक बार पानी या तरल पदार्थ के सम्पर्क में आने के बाद ‘प्रयोग की हुई’ गिनी जाएगी।
(4) अपनी गलती दूसरों पर थोपना बहुत ही आसान है।
(5) घी को काम में लेने के बाद डिब्बे को तुरंत ढक देवे।
(6) अश्वगन्धा का प्रयोग करते रहे, यह शरीर को ताकतवर तो बनाता ही है, दिमाग को शक्ति देता है। आयुष मंत्रालय ने भी इम्युनिटी केलिए अश्वगन्धा का प्रयोग की सलाह दी है।
(7) आम मध्यम वर्गीय आदमी इस देश में सबसे दुःखी प्राणी है। उसे कोई गरीब नहीं समझता, वह गरीबी का रोना रो भी नहीं सकता। वह सरकार या संयमसेवी संस्थाओं से मदद नहीं ले सकता है। यात्री अपनी जोखिम पर यात्रा करे व अपने सामान की हिफाज़त खुद करे वाली थ्योरी पर अपनी जिंदगी काटता है।
(8) एक वक्त में एक ही काम करें। ध्यान हटा, दुर्घटना घटी।
नोट — यदि लॉक डाउन के दौरान आपके साथ कोई ऐसी घटना घटी हो तो कमेंट करे। घर रहें, सुरक्षित रहे ताकि यह खूबसूरत दुनिया फिर देख सकें। सरकारी आदेशों की पालना करे।
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रीछेश्वर महादेव मंदिर सिरोही – श्रीकृष्ण व जामवंत रीछ से जुडी है यहाँ की पौराणिक कथा।

रीछेश्वर महादेव मंदिर सिरोही राजस्थान – मंदिर का इतिहास इस कथा में छुपा है, यह कथा भगवान श्री कृष्ण व त्रेतायुगीन उनके सहयोगी रहे जामवंतजी रीछ के मध्य मणी केलिए हुए भीषण युद्ध से जुड़ी है। यह मंदिर ऐतिहासिक है जिसके साक्ष्य यहाँ उपलब्ध है। इसी कथा को पाठकों की जानकारी हेतु साँझा कर रहे हैं।

रीछेश्वर (रिशेश्वर महादेव) महादेव मंदिर सिरोही का पौराणिक इतिहास
रीछेश्वर महादेव मंदिर सिरोही राजस्थान (रिशेश्वर महादेव सिरोही) का इतिहास —
राजस्थान के सिरोही जिले में अजारी गांव स्थित मारकुण्डेश्वर महादेव मंदिर से करीब 2 किमी की दुरी पर बसन्तग़ढ नाम का महाराणा कुम्भा का दुर्ग था जहां उन्होने कुछ सरदार सेनानियों की बदौलत जनता की रक्षा करते हुए मुगलों के दांत खट्टे करते हुए कई बार सीमा से बाहर कर दिया। यह स्थल राजवंशों के इतिहास की गौरवमयी गाथा को बयान करता है।
बसन्तग़ढ की अद्भुत हरीभरी छटाओं के मध्य भटेश्वर महादेव का परम पावन धाम है। जहां ब्रह्माजी का आलौकिक अद्वितीय मंदिर भी स्थित है जो कि पूरे भारत में दूसरे स्थान पर होने का गौरव हासिल किये हुए है। भटेश्वर महादेव मंदिर से करीब 12–15 किमी की दूरी पर नांदिया में रीछेश्वर धाम का भव्य व प्राचीन मंदिर पहाडियों की गुफाओं के मध्य स्थित है। पाठकों को हम इसी पौराणिक, ऐतिहासिक व धार्मिक मंदिर के अनोखे इतिहास से रूबरू कराने का प्रयास कर रहे हैं।
कहानियों, कथाओं व प्राचीन इतिहास के अनुसार कहां जाता है कि द्वापर युग में युगपुरूष भगवान द्वारिकाधीश ”सतरूपा मणी” रत्न को खोजते-खोजते नांदिया (राजस्थान के सिरोही जिले का एक गाँव) के घने जंगलों में आ पहुचे जहां त्रेतायुगीन राम सहयोगी जामवंत रीछ की भव्य गुफा पहा़डों के मध्य स्थित थी। वहां कृष्ण ने सतरूपा मणी पर दृष्टिपात किया और रीछ को उसे सौपने के लिए कहां किन्तु महाबली रीछ और युगपुरूष भगवान कृष्ण के मध्य मणी को लेकर टकराव पैदा हो गया और दोनो मे भीषण मल्ययुद्ध छिड गया, जो करीब अटठाईस दिवस तक चला। इस युद्ध के साक्षी स्वयं भगवान सूर्य पुत्र शनिदेव बने, जो आज भी मंदीर के पीछे वाले खुले मैदान के मध्य शनि स्थान के रूप में मौजूद है।

रीछेश्वर (रिशेश्वर महादेव) महादेव मंदिर सिरोही का पौराणिक इतिहास
इस युद्ध में एक दुसरे को पराजित हुए बिना एक-दूसरे की अद्भुत शक्ति का अलौकिक अनुमान होने लगा तब ही जामवंत की पुत्री ने पिताश्री से कहां कि पिताजी मैं तो मन ही मन श्याम सुन्दर को पति के रूप में वरण कर चुकी हुँ, अत: अब ये आपके दामाद (जामाता) है। पुत्री के वचन सुनकर जामवन्त रीछ ने श्याम सुन्दर को भली प्रकार निहारा और हाथ जो़डकर विनम्र प्रार्थना की, कि प्रभु आप देव, गंधर्व, दानव, मनुष्य अथवा मायावी इनमें से कौन है, कृपया अपना मूल परिचय दे, क्योंकि मुझसे मल्ययुद्ध में बराबरी करने वाला जगत में भगवान श्रीराम के सिवाय कोई और नहीं है।
जामवंत रीछ व भगवान द्वारिकाधीश के मध्य युद्ध का परिणाम —
जामवन्त रीछ के शील वचन सुनकर भगवान द्वारिकाधीश श्याम सुन्दर मोहन ने पूर्व कालिक श्रीराम के समय की जामवन्त के मन की इच्छा श्रीराम से मल्य युद्ध करने की रही थी, उसे द्वापर युग में कृष्ण अवतार में पुर्ण कर मनोच्छा का फल जामवन्त रीछ को प्रदान किया। जामवन्त रीछ के आग्रह पर भगवान कृष्ण ने चतुर्भुज धारी विष्णु भगवान नर-नारायण छवि के अलौकिक दर्शन कराया और फिर श्रीराम कालिन लंका काण्ड से लेकर राम-राज्य तक विभिन्न छवियों के अद्भुत दर्शन करायें।
भगवान के साक्षात मनुष्य रूप में पुन: दर्शन पाकर जामवन्त रीछ गदगद हो गया और प्रभु के चरणों में विनम्र आग्रह किया कि -‘हे भगवान मुझ निज मु़ढ प्राणी द्वारा किये गये अपराध को क्षमा करें मेरे द्वारा बार-बार आपकों विभिन्न कष्टों का सामना करना प़डा और आपके कोमल हृदय को दु:ख प्राप्त हुआ इसके लिए मैं बार-बार क्षमाप्रार्थी हूँ।
हे! कृपालु दीनबन्धु, दया के सागर, समदर्शीवान करूणामयी दया करें और मुझ अज्ञानी के मानस पटल से अहंकार, क्रोध और कामनारूपी विसंगतियों को सदा के लिए नष्ट कर दे। हे परमपूंज दिव्यदिव्यांकर महाप्रभु यदि आपने मुझे क्षमाकर अपनी शरणागत लिया हो तो मेरी निर्दोषपूर्ण पुत्री जामवंती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें।

रीछेश्वर (रिशेश्वर महादेव) महादेव मंदिर सिरोही का पौराणिक इतिहास
ऐसे बना रीछेश्वर महादेव मंदिर —
भक्तवत्सल करूणा के सागर भगवान ने जब भाविक भक्त शिरोमणी जामवन्त (रीछ) ऋषि के भक्तिमय उद्गार को सुना तो प्रसन्न होकर मनोकामना पुर्ण हो ऐसा अमर वरदान दिया और वरदान की पालना करते हुए जामवन्त ऋषि के सानिध्य में शिवलिंग की स्थापना की और अग्नि प्रज्जवलित कर दिव्य अनुष्ठान किया और अग्नि और महादेव की साक्षी में जामवन्त रीछ की पुत्री जामवंती को पत्नी के रूप में अंगीकार किया और जामवन्त रीछ वधु के पिता के रूप में आर्शिवाद प्राप्त किया।
जामवन्त रीछ ने अपने दामाता (जामाता) को बाहों में उठाकर सीने से लगा लिया और यशस्वी भव का आर्शिवाद दिया। कहा जाता है कि जामवन्त की पुत्री जामवंती और भगवान श्री कृष्ण के विवाह में देवादिदेव महादेव ने साक्षात प्रकट होकर वर-वधू को आर्शीवाद दिया।

रीछेश्वर रिशेश्वर महादेव सिरोही
तत्पश्चात जामवन्तजी ने अपनी पुत्री को विदा करते हुए द्वारिकाधीश को दहेज के रूप में सतरूपा मणी प्रदान की और भगवान ने उस पावन पवित्र स्थल का नाम ”रीछेश्वर” महादेव के नाम से अलंकृत किया और कहां- ”हे! महात्मने आपने अब तक युग-युगों से दारूण कष्ट प्राप्त किये है मेरी पूजा से आप सब कष्टो से मुक्त हुए हो, अब किसी प्रकार का कोई भय नहीं। आप जगत में भक्त शिरोमणी जामवन्त महर्षि के रूप में विख्यात होंगे और यह स्थल परम तीर्थ के रूप में प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा। यह स्थल रीछेश्वर के नाम से विख्यात होगा और आपकी अनुकम्पा से प्राणी मात्र के सभी मनोरथ कार्य सिद्ध होंगे’ इस प्रकार द्वारकाधीश भगवान ने जामवन्त महर्षि से विदा लेकर जामवन्ती के साथ द्वारिका नगर की ओर प्रस्थान किया।
तभी से यह पावन पवित्र स्थल विश्व में श्रैष्ठतम तीर्थो में गिना जाने लगा। जिसकी ख्याति आज तक जनमानस के हृदय में भक्ति के अंकुर विस्फोटित करती रहती है।
मनोज शर्मा